पंछी

एक अकेला पंछी उड़ चला आकाश में कही,
ढूंढने खुद ही अपने सपनो की राहों को।
कारवां मिलता गया और आए तूफान कई सारे,
ना रुका ना थका बह चला चीरता बादलों को।।

पर्वतों की चोटी हो या हो किसी नदी कि शीतलता,
सागर की लहरों से भी लड़ा वो अकेला परिंदा।
कुछ दोस्त मिले और कुछ मिले उसे दुश्मन,
चीरता गया वो पगला हर मुसीबतों को।।

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